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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

क्षणिका...


चाह अनंत - दुखद अंत

जग सपना - नहीं अपना

खाली हाथ - कौन साथ

सुबह-शाम - किसे आराम

बहता मन - व्यर्थ जीवन

बाहर सुन्दर - विकार अंदर

असल प्रीत - हारकर जीत

धूप छांव - सम भाव

सत्य ईश्वर - शेष नश्वर

चिंता छोड़ - चिंतन जोड़.


रविवार, 13 फ़रवरी 2011

प्रेम...








प्रेम
...

जैसे किसी पुष्प पर ठहरी
ओस की बूंद...
जो अनचाहे स्पर्श से
धूल में गिरकर
खो देता है
अपना अस्तित्व...
या फिर
पवित्रता की उष्णता पाकर
उपर उठकर
पा लेता है
अमरत्व...

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

बसंत...


बसंत...
...अनंत सफ़र पर निकले
प्रकृति का
सुन्दर-सुखद-स्वर्णिम
पड़ाव....



शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

"अनुभूति के फूल"



दुःख की आंधी हो या सुख के झोंके,
मन आंगन सजाये रखिये...


हर राह में मोड़ तय है,

जीवन का लक्ष्य बनाये रखिये...


अँधेरा सिर्फ कमी है उजाले की,

आशाओं के दीप जलाये रखिये...


नर्म धूप अतीत के झरोखे से भी आती है,

यादों का घर बसाये रखिये...

खुशियाँ महकती है दिल में,

"अनुभूति के फूल" खिलाये रखिये...



मंगलवार, 19 जनवरी 2010

बसंत स्वागत...

बसंत आगमन...


सजाना है जीवन...


खोलो बंद द्वार-मन...


होगा बसंत हर क्षण...

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

नये साल में.......



सच हो जाये सबके सपने नये साल में
बेगाने बन जाये अपने नये साल में,

दिल को दिल का मिले सहारा नये साल में
बहे प्रेम की अविरल धारा नये साल में,

हर मुखड़े पर मुस्कान खिले नये साल में
हर जुबां को सुन्दर गान मिले नये साल में,

सर्वत्र उठे सदभाव की लहरें नये साल में
सारे दुर्भाव-विकार मरें नये साल में,

सुख- दुःख बाटें सभी परस्पर नये साल में
जाति-धर्म का रहे न अंतर नये साल में,

विकसित हो तन-मन और जीवन नये साल में
सुख शांति रहे धरा-गगन में नये साल में.


बुधवार, 31 दिसंबर 2008

नव वर्ष......

"नव वर्ष
नव हर्ष
नव उत्कर्ष
नव विमर्श
नव संघर्ष........."

रविवार, 21 सितंबर 2008

जिन्दगी.....


जिन्दगी.....
आशा है निराशा है
अनसुलझी अबूझ परिभाषा है.
हंसना है रोना है
क्या सोचा क्या होना है.
हकीकत है कहानी है
जानकर भी अनजानी है.
जीत है हार है
जग का सार उपहार है.
दूरी है अधूरी ही
मजबूरी होकर भी जरूरी है.

शनिवार, 6 सितंबर 2008

भ्रम


बाहर सुंदर...............,
जाने क्या अन्दर
.....!

रविवार, 13 जुलाई 2008

"मैं खुशी हूँ"

"तुम्हारे आँगन में

रोज आती हूँ मैं

....कभी प्रातः की स्वर्णिम धूप बनकर

....कभी बारिश की मुस्कुराती बूंदे बनकर

....कभी अदृश्य बयार में समाई

मधुर सुवास बनकर

....कभी रमणीय निशा में

चाँद की चांदनी बनकर

....और भी

न जाने कितने रूपों में

रहती हूँ तुम्हारे आस-पास

हमेशा....

....कितने करीब हूँ मैं तुम्हारे

....लेकिन....!

तुम्हारी नजरें

जाने क्या-क्या ढूंढती रहती है

दिन-रात

मुझे नजर अंदाज करके

....शायद....

तुम नहीं जानते

....मैं कौन हूँ...?

"मैं खुशी हूँ "

तुम्हारे अंतरमन की खुशी....."